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गौ हत्या बंद हो सकेगी क्या - 2

कानून पेचिदगियों के कठघरे में कड़ी गाय - जिस कांग्रेस पार्टी ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ी और फिर आजादी हासिल की, उस कांग्रेस ने आजादी के बाद गांधी की मान्यताओं को सिरे से नकार दिया। असल में आजादी के बाद कांग्रेस किसी पार्टी का नाम नहीं रहा, जवाहरलाल नेहरू और उसके खानदान की जागीर का नाम कांग्रेस हो गया और आज भी है। आजादी की लड़ाई के दौरान गांधी और उनके साथियों ने गाय की महत्ता, महानता और उपयोगिता को अपने आंदोलन के साथ जोड़ा था। यहां तक कि गांधी से पहले की पक्तियों के कांग्रेस नेताओं, तिलक, लाजपत और मालवीय आदि ने भी कांग्रेस के संविधान में गाय के विषय को प्रमुखता से रखा था। परन्तु गांधी ने तो आजादी के सवाल को भी गोरक्षा से जोड़ा था। उन्होंने बारम्बार कहा कि गोरक्षा भारतीय संस्कृति का केंद्र तत्व है।

२८ दिसम्बर १९२४ को बेलगांव में उन्होंने कहा था. ''कई बातों में मैं गोरक्षा के प्रश्न को स्वराज्य के प्रश्न से बड़ा मनाता हूँ। जब तक हम यह न जान लें कि गोरक्षा किस तरह करनी चाहिए, तब तक स्वराज्य की कोई स्थिति नहीं है।'' गांधी ने कहा था, स्वराज्य हमारे लिए साधन है तथा अहिंसाप्रधान भारतीय संस्कृति का संरक्षण और विकास हमारे लिए साध्य है। परन्तु गांधी की मनोकामना को शासन पद्धति बारे उन द्वारा दिये गए निर्देशों की शासकों ने पूरी तरह अवहेलना एवं अपेक्षा कर दी। जिस गोरक्षा के प्रश्न को गांधी स्वराज्य के साथ जोड़ते थे, श्री जवाहरलाल नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने के बाद उसे सिरे से रद्द कर दिया। उन्होंने २ अप्रेल १९५५ को लोकसभा में घोषणा की, '' मैं प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं गोवधबंदी विधेयक के सर्वथा विरुद्ध हूं और इस सदन से कहना चाहता हूं कि इस विधेयक को बिल्कुल रद्द कर दें। राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि ऐसे विधेयक पर न तो विचार करें और न कोई कार्यवाही करें।'' संसद में प्रधानमंत्री द्वारा इस प्रकार के वक्तव्य के बाद न किसी राज्य सरकार में हिम्मत थी कि गोवधबंदी विधेयक विधानसभा में लाए और न संसद में साहस था कि नेहरू के बयान के बाद ऐसी कोई चर्चा हो। नेहरू ने उक्त वक्तव्य संसद में सन १९९४ में गांधी की जन्मभूमि वाले प्रदेश की गुजरात विधानसभा ने गोवधबंदी विधेयक पारित कर दिया।
Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
Introduction to the Vedas | Motivational Pravachan | बालक निर्माण के वैदिक सूत्र - वेद कथा - 12

सन १९९८ में गुजरात उच्च न्यायलय ने उसे रद्द कर दिया। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने २६ अक्टूबर सन २००५ को अपने निर्णय में गुजरात सरकार के गोवधबंदी कानून को सही करार दिया। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले सात सदस्यीय संविधान बैच ने ६:९ के बहुमत से याचिकाकर्ताओं की याचिका खारिज कर और गुजरात सरकार के हक में अपना निर्णय देकर संविधान की धारा ४८ की परवाह किये बिना, संविधान के अनुच्छेद ३१-सी प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए जनभावना के आदर का बहाना लेकर तथा संविधान के अनुच्छेद ५४-ए (जी) का हवाला देकर, जिसमें कहा गया है कि सभी लोगों को प्राणियों के प्रति करुणा ठहरा दिया परन्तु सुप्रीम कोर्ट का उक्त निर्णय, संविधान की धारा ४८ को समक्ष रखकर देश की संसद उसे किसी भी समय गैरकानूनी करार दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट का उक्त निर्णय संविधान के प्रावधानों की बैसाखियों का सहारा लेकर दिया गया एक लड़खड़ाता निर्णय है जो पुनरीक्षण याचिका का झटका भी सहन करने की स्थिति में नहीं है परन्तु फिर भी यह किसी छोटे-मोटे न्यायालय का निर्णय न होकर यह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है जो चाहे अपूर्ण भी हो परन्तु अदालतों के लिए एक नजीर जरूर है। इसके बाद एक प्रश्न उत्पन्न होता है कि इसे लागु कौन करेगा ?
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सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय केंद्र सरकार के गले नहीं उतर सकता, यह निर्णय देश के कस्साबों यानी कसाईयों के गले नहीं उतर सकता, यह निर्णय लाखों उन लोगों के गले नहीं उतर सकता जिनकी रोजी-रोटी ही गोहत्या के व्यापार से चलती है, जो प्रतिदिन लाखों नहीं करोड़ों रूपये के गोमांस के निर्यात का अवैध धंधा करते हैं। यह निर्णय देश के उन पुलिस अधिकारियों एवं प्रशासकों के गले नहीं उतर सकता जो गोमांस व्यपारियों से अवैध निर्यात करवाने के बदले मोटी रकम वसूल करते हैं। तो फिर यह लागू कैसे होगा? कोर्ट से न्याय प्राप्त कर लेने के बाद उसे लागू करवाने की अनेक स्टेजें बाकी रह जाती हैं। देश में राजनीतिक दल है सबको वोट चाहिएं, सभी राजनीतिक दल प्रत्येक वे नीतियां अपनायेंगे जिनसे जनता प्रभावित हो, कोई राजीनीतिक दल नहीं चाहता कि देश का कोई भी वोटर उसके दल से, उसके दल की नीतियों से नाराज हो, सभी राजनीतिक दल देशहित को अपने हित पर कुर्बान करते है।

कोई भी शासक दल वे कानून बनायेगा जिन कानूनों से उसके वोटर खुश रहें, कोई भी शासक दल, कोई भी सरकारी निर्णय लेते समय, कोई भी कानून बनाते समय, उन वर्गों, समुदायों, जातियों एवं बिरादियों का हित साधेगा जिनके वोट उसके दल के लिये पक्के हैं या परम्परागत हैं और वह उन दल के लिये कच्चे हैं, संदेहास्पद हैं। गोवध-बंदी कानून के विषय पर २ अप्रेल सन १९५५ को नेहरू द्वारा में दिया गया वह वक्तव्य इस बात जी उजागर करता था गोहत्या की थास्थिति बनाये रखने वालों के वोट पक्के थे। अतः उन्होंने गोहत्या रखने वालों के हक में वक्तव्या दिया। यदि नेहरू की सरकार को गोभक्तों की वोटों के कारण खतरा होता तो वे तुरन्त संसद में स्वयं गोवध-बंदी विधेयक पेश कर देते। वे जानते थे कि गोरक्षक या तो चाहते हैं कि गोहत्या बंद हो परन्तु यह नहीं चाहते कि नेहरू की सरकार जाए। वे अच्छी तरह समझते थे कि देश का उच्चवर्ग हिन्दू समुदाय या व्यापारी, गोरक्षा के विषय में कुछ भी कहता फिरे परन्तु कांग्रेस से परे नहीं हट सकता। ब्राह्मण, बनिये और व्यापारियों के उनके परम्परागत वोट थे और आज भी हैं। इस बात को नेहरू भी जानते थे और आज की कांग्रेस जानती है कि देश का उच्च वर्ग हिन्दू समुदाय, गोरक्षा के नाम पर कांग्रेस सरकार को कुर्बान नहीं कर सकता यदि गोवध-बंदी कानून लागू कर दिया गया तो जो तब्का उक्त कानून से प्रभावित होगा वह कांग्रेस से जरूर छिटक जायेगा। देश के वर्ग हिन्दू समुदाय का कांग्रेस के साथ भावनात्मक रिश्ता भी है और स्वार्थ का रिश्ता भी है जबकि गोरक्षा का विषय उनके लिये उक्त दोनों रिश्तों से गौण है।

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This Decision of the Supreme Court cannot be embraced by the Central Government, this decision cannot embrace the towns of the country, butchers, this decision cannot be embraced by millions of people whose livelihood is run by the trade of cow slaughter, which every day Millions, not millions, do illegal business of exporting beef. This decision cannot be embraced by the police officers and administrators of the country who charge a hefty amount in exchange for illegal export from beef traders. Then how will it be implemented?

 

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